नील मुक्तक

हजार दोस्त बनाये होगें मैनें पर तुम सा बनाया नही,
बांधवगढ़ नील मुक्तक
किस्सा दिल में दबा का दबा किसी को सुनाया नही,
सारी दौलत झोंक दी अपने ज़िन्दगी भर की कमाई, 
सुनता हूँ तेरे लफ्ज से मुहब्बत का मूल्य चुकाया नही||1||
राहे सफर में बात करना फोन से अच्छा नही समझता,
भूख के वक्त भोजन पका न हो तो कच्चा नही समझता,
जिसने बोया हो बीज नफ़रत का उसका क्या जबाब दे,
सच कहुँ मुहब्बत की भाषा नदान बच्चा नही समझता||2||
लोग भूल गए हमारी गलती को तो हमारा क्या दोष हैं,
कल भी चुपचाप थी दुनिया और आज भी खामोश है,
हम यूँ ही गलती करते रहेंगे कुछ न कुछ सीखने के वास्ते,
हम मुहब्बत में जीने वालो को कहाँ सही का होश हैं||3||
ओह तू शहर का मेरा तो वजूद ही गाँव का हैं |
मुझे देता जो शकुन वह बात पेड़ के छाँव का हैं|
तेरे घर की जलती छत मुझसे सहन नहीं होती, 
पहन जूते जलने का दुर्गंध यकीनन मेरे पाँव का हैं||4||
चार दिन ही तो ठहरा यार तेरे शहर आकर,
वापसी की तैयारी धूल धुआँ का कहर पाकर|
कितना तकलीफ बहता नाला घर के किनारे से,
रंग जम जाता खुशी का गाँव में नदी नहर पाकर||5||
लो तेरे पड़ोसी को पता नहीं तेरे बारे में कुछ भी,
बिक रहा गली गली भरे बाजारे में ही कुछ भी|
मैं सोचता था तेरा शहर चमकता होगा चाँद जैसा,
दिखा तो खास नही मेरे निहारे में ही कुछ भी||6||
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