![]() |
माता महाकाली पावागढ़, गुजरात |
पावागढ़ जिसके बारे में शायद ही मैंने कभी मन में ख्याल किया हूँगा, की कभी वहाँ जाकर, माँ भगवती के दर्शन करूँगा| वैसे तो मेरी जन्म स्थली के आस पास माता के अनेकों प्रसिद्ध स्थान है, जैसे माँ शारदा मैहरधाम, तो माँ ज्वाला उचेहरा वाली, माता बिरसिनी देवी पाली, के दर्शन तो मैंने एक बार कर लिया| साथ ही साथ मेरे स्वभाग्य में माता महाकाली पावागढ़ के दर्शन भी हो गये| और इससे ज्यादा मेरे लिए खुशी की बात भी क्या होगी, जो कम उम्र से ही नेको- अनेकों हिन्दू तीर्थ स्थानों के दर्शन सुलभ ही होते जा रहे हैं| बस मन में ख्याल आया की क्यों न मुझे किसी धार्मिक स्थल पर जाना चाहिए? तो स्वभाविक ही वह मनोकामना बिना किसी पूर्व योजना के ही पूर्ण हो जाती हैं|
"पंकिराम हो पंकिराम" नाम से बहुत ही प्रसिद्ध गरबा गाना, जो हर त्यौहारों में सुनाई ही देता है| मैंने भी सुन रखा था जिसमे माता महाकाली से मिलकर गरबा खेलने की बात कही जाती है| गुजरात की भूमि पर बसा वाकई में बहुत ही मनोहरी पर्वत पावागढ़, दर्शकों का मन तो मोह ही लेता है| उस स्थान पर मेरा जाना तो पहली बार ही हुआ, मगर अब ऐसा प्रतीत होता है, की मुझे फिर कभी मौका मिला तो शायद ही बदकिस्मती से मै उसे छोडूंगा| मगर मै बात करने जा रहा हूँ उस पल का जो हमने इस बार दर्शन के आनंद का लुप्त उठाये|
इंदौर स्टेशन से हम दो साथी रात्रि के १०:४५ पर मिलने वाली गाड़ी शांति एक्सप्रेश इंदौर से गांधीनगर तक चलने वाली पर सवार हुए| और गाड़ी पर बैठते ही हमने जय माता दी का जयकारा लगाये| किस्मत अच्छी थी क्यों की जिस जगह पर हमें शीट मिली वहां पर हमारे ही उम्र के और भी जवान माता के दर्शन के लिए ही सवार थे| सब के मन में अलग ही उत्साह, माता के दर्शन की ललक अलग ही झलक रही थी| क्योंकी उनके मन के भाव ही कह रहे थे| अपनी बातों से खुद का ही नहीं बल्कि आस पास के बैठे लोगों का भी वो मनोरंजन करते हुए सफ़र कर रहे थे| यही कारण था की किसी को नींद आ ही नहीं सकी| सब चर्चा में ही मशगुल, हंसी-ठिठोली के साथ बैठे हुए एक दुसरे का साथ देते रहे|
तब उन जवान साथीयों के साथ मेरी कोई जान पहचान नहीं बनी थी| बस जब अच्छी बात लगी तो हंस लिया वरना अपने मोबाइल में ही पुराने भोपाल के साथी के साथ चैट करते हुए मैंने रास्ता तय करता रहा| पर ज्यादा देर नहीं लगी उनसे दोस्ती बनने में, और जैसे ही हम डेरोल रेल्वे स्टेशन पर पहुंचकर गाड़ी से नीचे उतरे तो योजना बन गई के अब सब साथ ही चलेंगे| डेरोल से २०-२५ किमी का सफ़र करना था| सुबह का वक्त तब शायद ५:०० बज रहे थे, वाहन का दूर दूर तक कोई झलक नहीं दिखाई दे रही थी, तो चिंता बढ़ने लगी की अब कैसे पहुँच पाएंगे| मगर हम अकेले तो थे नहीं, हमारी ही जैसे ३००-४०० जनता सब एक तरफ बढती जा रही थी| उनके साथ ही हम भी एक स्थान पर पहुँच कर चाय पानी किया| तब शायद हम साथियों की संख्या ११ के लगभग थी| हम तो बस इस उम्मीद से गये थे की दो लोग जाकर दर्शन करके वापस आ जायेंगे, मगर माता की कृपा थी तो साथी बढ़ भी गये| वहां से एक ऑटो पर सवार हो पावागढ़ के लिए निकले| वही मौज मस्ती, जितने ऑटो के अन्दर नहीं बैठे थे उतने तो ऑटो के ऊपर ही चढ़ गये| और इस तरह से पहुँच गये पावागढ़ पर्वत के समीप|
पर्वत के ऊपर बादलों जैसा कोहरा, एक दम से सभी के मन को आनंदमय कर दिया| सब उसी दृश्य को देखने में लगे थे| तब मेरा भी मन उनके पास पर्वत में चढ़ कर छु लेने का करने लगा| और यहीं से प्रारंभ हो गई मोबाइल से फोटो खीचना| आपने आप को साथियों के साथ कैमरे में कैद करना| मगर हम लोगों को पर्वत भी चढ़ना था| क्यों की माता तो वहीँ विराजमान है| हम ग्यारह साथियों में कुछ का मन बस से कुछ दूर पर्वत में चढ़ने की योजना बनी तो, कुछ ने पैदल ही| जिसके कारण हम दो समूह में बट गये|
एक समूह जो बस से चले गये, और हम पञ्च साथी शैलेन्द्र, विशाल, अंकित, और हम दोनों पैदल ही सफ़र के लिए निकल पड़े| हमारा सफ़र शुरू हो इससे पहले पर्वत की ऊचाई देख कुछ नास्ता पानी करने को दिल किया| और वाकई में हमारे लिए वह सही भी साबित हुआ| वरना जिस पर्वत की ऊंचाई को हम दो घंटे का सफ़र मान रहे थे, वह पुरे दिन भर के लिए था| यह तो चाहे हम गुजरात सरकार की कमी मान ले या फिर मंदिर के ट्रस्ट की लापरवाही, जो भोजन पानी से लेकर निस्तार तक की भी व्यस्था के नाम पर नदारथ निकली| पानी तो किसी तरह मोल में मिल गया, परन्तु भोजन तो पैसे देकर भी नहीं पा सके|
अच्छा था माता की कृपा थी, मन में माँ के दर्शन की अभिलाषा के कारण भूख प्यास की परवाह नहीं थी| जिसके कारण ही पता नहीं देश के किस कोने कोने से लोग दर्शन के लिए आये हुए थे| बच्चे जवान बूढ़े, यहाँ तक की जो आपहिज थे वो भी माँ भगवती के दरबार में पहुचने वालो की भीड़ पर आंगे बढ़ रहे थे| ऐसी भीड़, जिसका कोई जबाब नहीं, आज धर्म के नाम पर कितना लुटपाद मची होने के बाबजूद भी लोग माता की कृपा पाने के लिए उन लोगों के लिए सबक बन गये है| जो धर्म को अपना व्यापर समझ, लोगों को लुटते फिरते है| कोई कुछ भी कहे मगर इंसान मन जिसके अंदर देवी देवतओ के प्रति आस्था और विश्वास कूट कूट कर भरा उसको कौन है? जो आपने गलत विचार और कार्य से मार सकता है|
फिर भी हम लगभग दिन के ११:०० बजे उस स्थान तक पहुँच गये जहाँ से माना जाता है की सफ़र के १०० प्रतिशत का ४० प्रतिशत रास्ता लगभग ५ से ७ किमी तय कर लिए| तब ८ से १० किमी का सफ़र और बचा था फिर भी हम उसी उत्साह से थोड़ा ठहरने के बाद आगे बढ़ गये| बीच बीच में जय माता दी के जयकारे या फिर आदेश महाकाल का, कहते हुए अपनी धुन में जा रहे थे| मगर हमारे पैर तब थम गये जब १-२ किमी के बाद लोगों की भीड़ पर शामिल हुए| क्योंकी वहां की जितना रास्ता नहीं, उससे कहीं ज्यादा भीड़ मौजूद थी| और ऐसी भीड़, जहाँ एक कदम आंगे बढ़ने के लिए कम से कम ५ मिनिट रुकना पड़ता था| थोड़ी देर बाद जब गर्मी और थकान से आराम की जरुरत हुई तो एक दुकान पर हम चार साथी रुक गये| क्यों की कल रात एक भी न सोने की बजह से नींद भी अपने आगोश में ले रही थी| कभी धुप भी निकल कर गर्मी को बड़ा दे रही थी| मगर अब साथ में ही आगे बढ़ पाये, शायद ही संभव था? इसलिए बिछड़ने में हमें देर नहीं लगी| और तब बचा मै अकेला| मगर कुछ परवाह करने की जरुरत तो नहीं थी| क्योंकी देवी के दरबार में पहुंचे लोग बड़े ही धैर्य पूर्वक आगे बढ़ रहे थे, वह भी बिना किसी से बातचीत किये| भीड़ में धक्के लगने तो स्वभाविक है|
मगर उतने ऊँचे पर्वत में चढ़कर जहाँ से गिरने पर मौत ही मिल सकती है गुजरात सरकार की पुलिस व्यस्था तो नदारथ ही थी| कोई पहले से योजना जिस पर लोगों को बिना किसी परेशानी के दर्शन कर पाना संभव हो, बनी ही नहीं| पुलिस चाहती तो लोगों को कतार के मद्धम से सम्भाल सकती थी, मगर नहीं बस हाथ में डंडा रखकर दूर से खड़े होकर इशारे बस कर रही थी|
कुछ स्थानीय लोगों ने सहयोग किया तो कुछ भीड़ ने समझदारी दिखाई| और इस तरह से मै पहुँच गया उस पर्वत के ऊचे माले पर| परन्तु अभी यात्रा पूरी नहीं हुई थी| अभी भी २००-३०० सीड़ी चढने थे मगर वहां के चाहे तालाब में स्नान करने के बाद, दो तालाब तो वहीँ पर मौजूद थे| समय २ बजे दोपहर, धुप भी निकलती तो कभी बादल में छुप जाती थी| लगभग एक घंटे के आराम बाद वापस माता के मंदिर समीप के तालाब में स्नान करने के बाद दर्शन के लिए ऊपर चढ़ना प्रारम्भ किया और सहजता से मेरी वह मनोकामना पूरी हुई जो मै घर से निकल कर मन में किया था, माता के दर्शन की| लोगों के साथ मंदिर पहुँच और माँ की वह झलक देख मैं व्यस्था के अनुसार नीच पहुँच नारियल प्रसाद चढ़ाया| और इस तरह से मेरी मन में नवरात्रि की पावन दिनों में माँ के दर्शन पाने की चाहत पूरी हुई|
वह जगत जननी माँ भगवती जिसने प्राचीन कल में तरह तरह के रूप में अवतार लेकर संसार का कल्याण करने वाली भगवती के लिए मानव मन की बात जो वह सोचता है, छुपी नहीं होती| बुरे करने वाले को कभी वह छोडती नहीं, मगर जो उसके शरण में चला जाता है, उसके सारे पाप मिटाकर क्षमा कर देती है| आज हम जो भी है, उसी की कृपा है| वह चराचर जगत को संचालित करने वाली है| कहते है उसके बिना आदेश के तो एक पत्ता भी नहीं हिलता, फिर भी मानव मन यदि मूढ़ता पूर्वक किसी का अहित ही सोंचे, और कर्म पापी के हो तो, वह कैसे किसी का उद्धार कर सकती है| सच तो यही है, की वह जगत जननी माँ किसी का भी अहित नहीं चाहती, सब पर समान द्रष्टि बरसाती है, और आपने भक्तों का कल्याण करती है| ऐसे माँ के चरणों में मेरा बार बार बंदन अभिनंदन से मेरा सिर आज भी झुकता है, और अगर इसी तरह कृपा रही तो हमेशा मेरा मन उनके चरणों में लगा रहेगा, और दर्शन के लाभ मिलते रहेंगे|
शाम के लगभग ५ बजे मै पर्वत से नीचे की तरफ अकेले ही वापस आया| कुछ दूर पैदल उतरने के बाद बस से सबसे नीचे पहुँच, तीन ऑटो के मद्धम से कुछ इस तरह से पावागढ़-हैरोल, हैरोल-कैरोल,कैरोल-डेरोल रेल्वे स्टेशन पर रात्रि के ८ बजे पहुँचा| जहाँ मुझे फिर से चारों साथी वापस मिल गये, और फिर एक साथ, हम सभी गाड़ी में एक ही स्थान पर बैठकर सुबह ७ बजे इंदौर पहुँच गये|
सूरज कुमार साहू 'नील' यात्रा-वृतांत
बांधवगढ़ उमरिया मप्र २३/०९/२०१७-२५/०९/२०१७
जय माता दी जय माता दी जय माता दी जय माता दी
"पंकिराम हो पंकिराम" नाम से बहुत ही प्रसिद्ध गरबा गाना, जो हर त्यौहारों में सुनाई ही देता है| मैंने भी सुन रखा था जिसमे माता महाकाली से मिलकर गरबा खेलने की बात कही जाती है| गुजरात की भूमि पर बसा वाकई में बहुत ही मनोहरी पर्वत पावागढ़, दर्शकों का मन तो मोह ही लेता है| उस स्थान पर मेरा जाना तो पहली बार ही हुआ, मगर अब ऐसा प्रतीत होता है, की मुझे फिर कभी मौका मिला तो शायद ही बदकिस्मती से मै उसे छोडूंगा| मगर मै बात करने जा रहा हूँ उस पल का जो हमने इस बार दर्शन के आनंद का लुप्त उठाये|
इंदौर स्टेशन से हम दो साथी रात्रि के १०:४५ पर मिलने वाली गाड़ी शांति एक्सप्रेश इंदौर से गांधीनगर तक चलने वाली पर सवार हुए| और गाड़ी पर बैठते ही हमने जय माता दी का जयकारा लगाये| किस्मत अच्छी थी क्यों की जिस जगह पर हमें शीट मिली वहां पर हमारे ही उम्र के और भी जवान माता के दर्शन के लिए ही सवार थे| सब के मन में अलग ही उत्साह, माता के दर्शन की ललक अलग ही झलक रही थी| क्योंकी उनके मन के भाव ही कह रहे थे| अपनी बातों से खुद का ही नहीं बल्कि आस पास के बैठे लोगों का भी वो मनोरंजन करते हुए सफ़र कर रहे थे| यही कारण था की किसी को नींद आ ही नहीं सकी| सब चर्चा में ही मशगुल, हंसी-ठिठोली के साथ बैठे हुए एक दुसरे का साथ देते रहे|
तब उन जवान साथीयों के साथ मेरी कोई जान पहचान नहीं बनी थी| बस जब अच्छी बात लगी तो हंस लिया वरना अपने मोबाइल में ही पुराने भोपाल के साथी के साथ चैट करते हुए मैंने रास्ता तय करता रहा| पर ज्यादा देर नहीं लगी उनसे दोस्ती बनने में, और जैसे ही हम डेरोल रेल्वे स्टेशन पर पहुंचकर गाड़ी से नीचे उतरे तो योजना बन गई के अब सब साथ ही चलेंगे| डेरोल से २०-२५ किमी का सफ़र करना था| सुबह का वक्त तब शायद ५:०० बज रहे थे, वाहन का दूर दूर तक कोई झलक नहीं दिखाई दे रही थी, तो चिंता बढ़ने लगी की अब कैसे पहुँच पाएंगे| मगर हम अकेले तो थे नहीं, हमारी ही जैसे ३००-४०० जनता सब एक तरफ बढती जा रही थी| उनके साथ ही हम भी एक स्थान पर पहुँच कर चाय पानी किया| तब शायद हम साथियों की संख्या ११ के लगभग थी| हम तो बस इस उम्मीद से गये थे की दो लोग जाकर दर्शन करके वापस आ जायेंगे, मगर माता की कृपा थी तो साथी बढ़ भी गये| वहां से एक ऑटो पर सवार हो पावागढ़ के लिए निकले| वही मौज मस्ती, जितने ऑटो के अन्दर नहीं बैठे थे उतने तो ऑटो के ऊपर ही चढ़ गये| और इस तरह से पहुँच गये पावागढ़ पर्वत के समीप|
![]() |
माता महाकाली दर्शन पावागढ़ |
एक समूह जो बस से चले गये, और हम पञ्च साथी शैलेन्द्र, विशाल, अंकित, और हम दोनों पैदल ही सफ़र के लिए निकल पड़े| हमारा सफ़र शुरू हो इससे पहले पर्वत की ऊचाई देख कुछ नास्ता पानी करने को दिल किया| और वाकई में हमारे लिए वह सही भी साबित हुआ| वरना जिस पर्वत की ऊंचाई को हम दो घंटे का सफ़र मान रहे थे, वह पुरे दिन भर के लिए था| यह तो चाहे हम गुजरात सरकार की कमी मान ले या फिर मंदिर के ट्रस्ट की लापरवाही, जो भोजन पानी से लेकर निस्तार तक की भी व्यस्था के नाम पर नदारथ निकली| पानी तो किसी तरह मोल में मिल गया, परन्तु भोजन तो पैसे देकर भी नहीं पा सके|
अच्छा था माता की कृपा थी, मन में माँ के दर्शन की अभिलाषा के कारण भूख प्यास की परवाह नहीं थी| जिसके कारण ही पता नहीं देश के किस कोने कोने से लोग दर्शन के लिए आये हुए थे| बच्चे जवान बूढ़े, यहाँ तक की जो आपहिज थे वो भी माँ भगवती के दरबार में पहुचने वालो की भीड़ पर आंगे बढ़ रहे थे| ऐसी भीड़, जिसका कोई जबाब नहीं, आज धर्म के नाम पर कितना लुटपाद मची होने के बाबजूद भी लोग माता की कृपा पाने के लिए उन लोगों के लिए सबक बन गये है| जो धर्म को अपना व्यापर समझ, लोगों को लुटते फिरते है| कोई कुछ भी कहे मगर इंसान मन जिसके अंदर देवी देवतओ के प्रति आस्था और विश्वास कूट कूट कर भरा उसको कौन है? जो आपने गलत विचार और कार्य से मार सकता है|
फिर भी हम लगभग दिन के ११:०० बजे उस स्थान तक पहुँच गये जहाँ से माना जाता है की सफ़र के १०० प्रतिशत का ४० प्रतिशत रास्ता लगभग ५ से ७ किमी तय कर लिए| तब ८ से १० किमी का सफ़र और बचा था फिर भी हम उसी उत्साह से थोड़ा ठहरने के बाद आगे बढ़ गये| बीच बीच में जय माता दी के जयकारे या फिर आदेश महाकाल का, कहते हुए अपनी धुन में जा रहे थे| मगर हमारे पैर तब थम गये जब १-२ किमी के बाद लोगों की भीड़ पर शामिल हुए| क्योंकी वहां की जितना रास्ता नहीं, उससे कहीं ज्यादा भीड़ मौजूद थी| और ऐसी भीड़, जहाँ एक कदम आंगे बढ़ने के लिए कम से कम ५ मिनिट रुकना पड़ता था| थोड़ी देर बाद जब गर्मी और थकान से आराम की जरुरत हुई तो एक दुकान पर हम चार साथी रुक गये| क्यों की कल रात एक भी न सोने की बजह से नींद भी अपने आगोश में ले रही थी| कभी धुप भी निकल कर गर्मी को बड़ा दे रही थी| मगर अब साथ में ही आगे बढ़ पाये, शायद ही संभव था? इसलिए बिछड़ने में हमें देर नहीं लगी| और तब बचा मै अकेला| मगर कुछ परवाह करने की जरुरत तो नहीं थी| क्योंकी देवी के दरबार में पहुंचे लोग बड़े ही धैर्य पूर्वक आगे बढ़ रहे थे, वह भी बिना किसी से बातचीत किये| भीड़ में धक्के लगने तो स्वभाविक है|
मगर उतने ऊँचे पर्वत में चढ़कर जहाँ से गिरने पर मौत ही मिल सकती है गुजरात सरकार की पुलिस व्यस्था तो नदारथ ही थी| कोई पहले से योजना जिस पर लोगों को बिना किसी परेशानी के दर्शन कर पाना संभव हो, बनी ही नहीं| पुलिस चाहती तो लोगों को कतार के मद्धम से सम्भाल सकती थी, मगर नहीं बस हाथ में डंडा रखकर दूर से खड़े होकर इशारे बस कर रही थी|
कुछ स्थानीय लोगों ने सहयोग किया तो कुछ भीड़ ने समझदारी दिखाई| और इस तरह से मै पहुँच गया उस पर्वत के ऊचे माले पर| परन्तु अभी यात्रा पूरी नहीं हुई थी| अभी भी २००-३०० सीड़ी चढने थे मगर वहां के चाहे तालाब में स्नान करने के बाद, दो तालाब तो वहीँ पर मौजूद थे| समय २ बजे दोपहर, धुप भी निकलती तो कभी बादल में छुप जाती थी| लगभग एक घंटे के आराम बाद वापस माता के मंदिर समीप के तालाब में स्नान करने के बाद दर्शन के लिए ऊपर चढ़ना प्रारम्भ किया और सहजता से मेरी वह मनोकामना पूरी हुई जो मै घर से निकल कर मन में किया था, माता के दर्शन की| लोगों के साथ मंदिर पहुँच और माँ की वह झलक देख मैं व्यस्था के अनुसार नीच पहुँच नारियल प्रसाद चढ़ाया| और इस तरह से मेरी मन में नवरात्रि की पावन दिनों में माँ के दर्शन पाने की चाहत पूरी हुई|
![]() |
पावागढ़ शहर माता महाकाली दर्शन |
शाम के लगभग ५ बजे मै पर्वत से नीचे की तरफ अकेले ही वापस आया| कुछ दूर पैदल उतरने के बाद बस से सबसे नीचे पहुँच, तीन ऑटो के मद्धम से कुछ इस तरह से पावागढ़-हैरोल, हैरोल-कैरोल,कैरोल-डेरोल रेल्वे स्टेशन पर रात्रि के ८ बजे पहुँचा| जहाँ मुझे फिर से चारों साथी वापस मिल गये, और फिर एक साथ, हम सभी गाड़ी में एक ही स्थान पर बैठकर सुबह ७ बजे इंदौर पहुँच गये|
सूरज कुमार साहू 'नील' यात्रा-वृतांत
बांधवगढ़ उमरिया मप्र २३/०९/२०१७-२५/०९/२०१७
जय माता दी जय माता दी जय माता दी जय माता दी
0 comments:
Post a Comment