भगवान और भाव

जी हाँ वर्तमान भारत और उसके गोद में समाया तमाम हिन्दू धर्म के अनुयायी की बात करने जा रहा हूँ| चूँकि नवरात्रि पर्व का विशेष दिन चल रहे हैं | जगह जगह माता जी की प्रतिमा स्थापित की गई हैं| भक्तों के द्वारा रोज पूजा आरती भी की जा रही हैं| नौ दिन चहल पहल का दिन होता ही है जो हम बचपन से ही देखते आये हैं|तब मेरा वक्त गाँव में बिताता था, और अब शहर में | गाँव की बात करने बैठ जांऊ तो शायद मुझे अपने विचार से भटकना हो जाए| इसलिए सीधे शहर की तरफ चलता हूँ जहाँ अक्सर मुझे देखने को मिलता है कि जैसे भगवान से भक्त का फासला अब इतना बढ़ गया जिसकी कोई कल्पना नही की जा सकती| मुझे तो महसूस हुआ फासले जैसी कड़ी अब रह ही नहीं गई| लोग उसी तरह मातारानी की प्रतिमा को स्थापित करते हैं साथ ही पूजा भजन क्या कुछ नही करते ? लोग दर्शन के लिए लम्बी कतार भी लगाकर इंतजार करते हैं ? मगर बात करूँ तो भाव?जहाँ तक मुझे समझ में आता है तो भाव जैसा कोई चीज भक्त के अंदर दिखाई नही देती| पहले या गाँव में भगवान के प्रति भक्त के मन में ऐसा भाव नजर आता है जैसे किसी प्रेमी या प्रेमिका को एक दूसरे से मिले या बगैर बात किये संतुष्टी प्राप्त नही होती| इससे बढ़िया उदाहरण और क्या हो सकता है? आज का वक्त है, और जैसा नजर आ रहा है| फिर मैं सोचता हूँ बिना भाव के भगवान भक्त के यहाँ क्या करते हैं? कुछ भी नहीं, डीजे जैसे साउंड से हलचल मचा देने वाले गीत सुनते है| और जैसे ही नौ दिन पूरे होते हैं भक्त से विदा ले लेते हैं|जाको रही भावना जैसी| प्रभु मूरत मिले तिह तैसी||रामचरित्र मानस की चौपाई है| खैर इससे क्या फर्क पड़ता है मैं जिनके लिए बात कर रहा हूँ उनके पास तो हिन्दू धर्म के ही ग्रंथ पढ़ने का वक्त नही| युवा पीढ़ी जो यही 10-12 से लेकर 50-55 तक की उम्र में है| अभी माता जी के दिन हैं तो उनकी स्थापना पूजा आरती करना, सड़को पर अपनी शक्ति प्रदर्शन करना| माता जी के चौखट में दर्शन करने जाना, और फिर वही पर साथ आये व्यक्ति(दोस्त या परिवार)के साथ हंसी ठिठोली करना| फिर विदा कर देना यह कहकर की 'भगवन हमको भूल न जान|अगले साल फिर से आना||' जी बिलकुल वो तो त्यौहार का वक्त है बार बार आयेगा, तुम मनाओगे तो आयेगा, नही मनाओगे तो आयेगा| फर्क सिर्फ इतना रहेगा की तब किसी को पता नहीं चलेगा कि कोई त्यौहार भी आया है| और अभी जो किया जा रहा तो क्या सही| बिना भगवान के भाव के भक्ति?नही शायद मैं गलत कह रहा हूँ| नौ दस दिन तक माता की प्रतिमा के समाने हाथ जोड़कर बड़े बड़े लाऊड स्पीकर के माध्यम से भजन गीत चलाना, सुबह शाम पूजा आरती करना फिर क्या है? मेरे हिसाब से तो सिर्फ दिखाबा, जिसे आज फैशन कह सकते हैं| तो फिर इतना बस से भगवान की आराधना हो गई क्या|
भगवान् और भाव -लेख नील
कलयुग के बारे में तो कहा भी गया है हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में, जहाँ अन्य युगों में वर्षों कठीन तप एवं जप करने के बाद भगवान की कृपा होती थी मनोकामना पूर्ण होती थी| वही कलयुग में अल्प समय में ही प्राप्त हो जाती है| तो क्या यही है अल्प समय? जब मूर्ति देखकर हम हाथ जोड़ लेते हैं, और उसके पहले हंसी ठिठोली मिलना जुलना करते रहते हैं? क्यों नहीं बिलकुल हो सकता है|कोई गीत के बोल मेरे कान में बार बार गुंज रहे हैं ~लोग कहते भगवान आते नही | कोई मीरा के जैसा बुलाते नही| तो क्या मीरा जी यही टीम टाम सज सवारकर भगवान को बुला लेती थी| शायद उनके हाथ में स्मार्टफ़ोन होता तो सेल्फी लेकर सामाजिक मीडिया में अपलोड भी कर देती| किंतु उनके हाथ में तमूरा था | कंठ पर खुद के लिखे भजन थे| दिल में श्री कृष्ण जी की मूरत थी, मन में भाव था की भगवान सभी जगह पर मौजूद है और वह अपने हर भक्त के दिल में हैं| मेरे तो सिर्फ न सिर्फ वही है| उनके सिवा तो कोई नही है जगह में | मुझे उनके दर्शन करना है| रूठेगें तो मनाना है| और सबसे बड़ा उदेश्य उनके चरणों से लिपटकर सदगति कोप्राप्त करना है| ये थे भाव| अब भला किसके मन में है?भाव का एक अच्छा उदाहरण और है जो गाँव में देखा जाता है| अक्सर पूजा पाठ के दौरान कोई गलती या खुशी स किसी पर माता का आना| जिसे लोग कहते हैं क उसे भाव आ गये| और यह सच है अगर ऐसा नही होता तो गर्म लोहे की जंजीर को हाथ से पकड़ा नही जाता और न ही धार दार तलवार को छाती पर रख नरीयल तोड़ा जाता, गाल पर लोहे की नोंक वाली छड़ी को आरपार करके न चला जाता| बहुत से उदाहरण देखने को मिल जाते हैं जो सिर्फ भाव के ही कारण सम्भव होते हैं|आजकल तो दूर दराज लोग बड़े प्रसिध्द मंदिरों में भी जाते हैं तो घूमने के बहाना, दर्शन करने के बहाना | भाव का कुछ पता नहीं| बस श्रध्दा जाग गई मन में तो चलो दोस्त या परिवार के साथ| होता क्या है वही हंसी ठिठोली| हर कुछ तो आजकल मजाक बन चूका है| यदि मैं बात करूंगा संस्कार की तो कुछ ज्यादा समझा सकूंगा| इसमें ठीक भी नहीं|मुझे पता है हर कोई इस लेख को पढ़ेगा तो नही मगर जो भी पढ़ना मित्र, तो अपने आस पास, परिवार मित्र के बीच में एक बार चिंतन अवश्य कर लेना, यदि आप अपने धर्म के प्रति निष्ठावान बने रहना चाहते हो तो| क्योंकि अब यह चिंता का विषय हो चूका है| अक्सर कोई न कोई सवाल पैदा करता रहता था कि भगवान कहाँ होते हैं? तो हम कहते थे कि हमारे दिल में, मन में, मंदिर में, फिर ये मूर्तियाँ क्या है? तो स्वरूप| पर इन सबका सबसे अच्छा जबाब जो होता है तो भाव| भगवान होते हैं तो सबके भाव में, क्योंकि कोई भगवान को नही देखा किन्तु महसूस तो करते, अपने अंदर के भाव से| अगर ऐसा नही करते तो बिना स्वाद की जीभ की तरह खुद को भक्त मान लेना चाहिए| .................जय माता दी|सूरज कुमार साहू नील,मझगवाँ बान्धवगढ उमारिया मप्र
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