सोंमालोब समा• क्र•978
सिरसक - निकही बरसा

निकही बरसा होत फलाने,
चला करा तईयारी हो,
यहे मेर झो बरसत रही तो,
दाना उगी बहु भारी हो|

रोपा थरहा बड़ पारो अऊ,
लाईके हर का खेतवा चला,
जोत लईस कल फलाने सेहरा,
मरवा का जोतबा लईस फला,

नंदलाल धार मा उरदा तिली,
पटपरहा माही कोदो बोईन,
रोपा के लाने मैर तके कुछु,
बोमय अबै न टगरी निमाई|

दोगढ़ी माही ता भुट्टा बोके,
ब्याध बना लईन सुमरा लाने,
बाहरा लईक धमकिस पानी,
जनतय हैं सब तुमरा लाने|

भटबा मा ता हर साले गोरूआ,
कुदरा मा चराऊत हैन|
ज्यादा भय ता कछरा लई गयन,
खेरबा गाँव का जराऊत हैन|

सूरज कुमार साहू नील,
बान्धवगढ़ उमरिया मप्र
#स्वरचित_रचना 09-07-2020
टीप- सेहरा, मरबा, नंदलाल धार,
पटपरहा, मैर, टगरी, निमाई, दोगढ़ी, बाहरा, भटबा, कछरा, सगले हमरे गाँव के हारन केर नाम आय

पटल समीच्छा
१६- श्री सूरज कुमार साहू जीः- " निकहा बरसा " रचना मा खेती किसानी के हाल सुनाइन। निकहा बारिस मा खुसी जताइन। गाँउ के सबै हारन के नाम रचना मा पिरोइन - पटपरहा, मैर, सेहरा , भटबा,धार, नंदलाल, टगरी , दोंगरी, बहरा कछरा। निकही रचना। बहुत बहुत बधाई।

सीताशरण गुप्त
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